एक दिन, एक गरीब लकड़हारा
गहरे जंगल के एक छोटे से गाँव में, एक गरीब लकड़हारा रहता था। उसका नाम रमेश था। रमेश बहुत ही ईमानदार और मेहनती आदमी था। वह अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ एक छोटी सी झोपड़ी में रहता था।
रमेश हर दिन सुबह तड़के उठता, अपनी कुल्हाड़ी उठाता और जंगल की ओर निकल पड़ता। वह पूरे दिन मेहनत करता, पेड़ काटता और लकड़ियां इकट्ठा करता। शाम को, वह उन लकड़ियों को बेचकर अपने परिवार का पेट पालता था। यह उसकी दिनचर्या थी।
लेकिन रमेश की मेहनत के बावजूद, वह अपनी गरीबी से बाहर नहीं निकल पा रहा था। एक दिन, जब वह जंगल में लकड़ी काट रहा था, उसे एक बहुत पुराना और बड़ा पेड़ मिला। रमेश ने सोचा, "अगर मैं इस पेड़ को काट दूं, तो मुझे बहुत सारी लकड़ियां मिल जाएंगी।" उसने तुरंत अपनी कुल्हाड़ी उठाई और पेड़ को काटना शुरू कर दिया।
पेड़ बहुत मोटा और मजबूत था। रमेश ने पूरा दिन उस पेड़ को काटने में लगा दिया, लेकिन पेड़ नहीं गिरा। थकान से चूर, रमेश ने सोचा, "कल मैं इसे पूरा कर दूंगा।" उसने अपने औज़ार समेटे और घर लौट आया।
अगले दिन, रमेश फिर से उसी पेड़ के पास गया। उसने देखा कि उस पेड़ की जड़ें बहुत गहरी थीं। वह निराश हो गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने और भी जोर से पेड़ को काटना शुरू कर दिया। तभी, अचानक एक चमत्कार हुआ। पेड़ गिरने लगा और उसके नीचे एक चमचमाता हुआ संदूक दिखाई दिया।
रमेश ने सोचा, "क्या यह खजाना हो सकता है?" उसने जल्दी से संदूक को खोला। उसके अंदर सोने और चांदी के सिक्के भरे हुए थे। रमेश की आँखें चमक उठीं। उसने सोचा, "अब मेरी गरीबी दूर हो जाएगी।" उसने संदूक को उठाया और खुशी-खुशी घर लौट आया।
रमेश ने अपनी पत्नी को सारी कहानी सुनाई। वे दोनों बहुत खुश हुए और उन्होंने भगवान का धन्यवाद किया। रमेश ने सोचा कि अब उसे लकड़ी काटने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वह आराम से अपने परिवार के साथ जीवन बिता सकेगा।
लेकिन, अगले ही दिन, गाँव के सरपंच ने रमेश के घर आकर कहा, "रमेश, तुम्हारे पास इतना सोना कहाँ से आया?" रमेश ने सरपंच को पूरी सच्चाई बताई। सरपंच ने कहा, "यह खजाना गाँव का है। इसे हमें सभी गाँववालों में बांटना होगा।" रमेश निराश हो गया, लेकिन उसने सोचा कि सरपंच सही कह रहा है। उसने सारा खजाना गाँव के लोगों को बांट दिया।
अब, रमेश फिर से गरीब हो गया था, लेकिन उसके दिल में संतोष था। उसने अपनी मेहनत से फिर से अपनी जिंदगी को संवारने का फैसला किया। उसने फिर से जंगल में जाकर लकड़ियां काटना शुरू कर दिया।
एक दिन, जब वह जंगल में काम कर रहा था, उसे एक बूढ़ा साधु मिला। साधु ने रमेश से कहा, "बेटा, तुम्हारी ईमानदारी और मेहनत से मैं बहुत प्रभावित हूँ। मैं तुम्हें एक वरदान देना चाहता हूँ।" रमेश ने साधु को धन्यवाद दिया और पूछा, "मुझे क्या वरदान देंगे?"
साधु ने कहा, "मैं तुम्हें एक ऐसा पेड़ दूंगा, जो कभी भी नहीं खत्म होगा। जब भी तुम्हें लकड़ियों की जरूरत हो, इस पेड़ को काट लेना।" रमेश ने साधु के पैर छूकर धन्यवाद किया और वह पेड़ ले आया।
रमेश की जिंदगी फिर से बदल गई। अब उसे कभी भी लकड़ियों की कमी नहीं होती थी। वह अपनी मेहनत से अपने परिवार को सुखी रखता और गाँव के लोगों की भी मदद करता। धीरे-धीरे, रमेश का नाम पूरे गाँव में प्रसिद्ध हो गया। सब लोग उसकी ईमानदारी और मेहनत की तारीफ करते थे।
इस तरह, रमेश ने अपनी ईमानदारी और मेहनत से न केवल अपनी जिंदगी को बदला, बल्कि अपने गाँव के लोगों की जिंदगी को भी सुखमय बना दिया। उसने सिखाया कि सच्ची खुशी और संतोष मेहनत और ईमानदारी में ही छिपे होते हैं।
कहानी का अंत
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, हमें अपनी मेहनत और ईमानदारी नहीं छोड़नी चाहिए। सच्ची मेहनत और ईमानदारी से हमेशा सफलता और संतोष मिलता है। रमेश की तरह, हमें भी अपनी मेहनत से अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए।